सार - मुझ आत्मा में परमात्मा समान सात गुण विद्यमान होते हैं - पवित्रता, शांति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति व ज्ञान। आइये जानते हैं इन गुणों को -
1. पवित्रता

पवित्रता,आत्मा का पहला गुण भी है और सुख - शांति की जननी भी है। पवित्रता का अर्थ केवल ब्रह्मचर्य नहीं है क्योंकि ब्रह्मचर्य सिर्फ शरीर से सम्बंधित है किन्तु पवित्रता का वास्तविक अर्थ है मन - वचन - कर्म से पवित्र रहना जिसे संपूर्ण पवित्रता कहते हैं। हम अधिकतर पवित्रता को शारीरिक रूप से आंकते हैं लेकिन आत्मा को पवित्र तब कहेंगे जब उसके संकल्प भी पवित्र हों। संकल्प हमारे मन की रचना होते हैं इसलिये यदि संकल्प शुद्ध हों तो वचन भी सार्थक निकलेंगे और कर्म में सही होगा। संकल्प में पवित्रता अर्थात सभी को आत्मा रूपी भाई जान सुख देना, दुःख न देना। लेख: पवित्रता का अर्थ
2. शांति
"शांति आपके गले का हार है" - शिव बाबा (स्त्रोत : मुरली) आज प्रत्येक मनुष्य शांति की तलाश में है परन्तु शांति की तलाश कहाँ से कर सकते हैं ? वास्तव में शांति आत्मा का स्वधर्म है। जरा सोचिये - जब आपके मन में किसी प्रकार के प्रश्न या व्यर्थ संकल्प न हों ,किसी प्रकार का भार न हो ,तब वहां एक स्थिति होती है जिसमें सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। यही शांति है। यही आत्मा की स्वस्थिति है और इसे प्राप्त करने के लिये हमें अपने संकल्पों को सही दिशा देनी होगी। मन का यह सही प्रशिक्षण राजयोग का मुख्य भाग है।

3. प्रेम

यह माना जाता है कि ईश्वर प्रेम है एवं प्रेम एक शक्ति है। प्रेम आत्मा की मौलिक अनुभूति है। हम हर उस वस्तु व व्यक्ति से प्रेम करते हैं जो हमारे समान होते हैं या हमें प्रभावित करता हैं। जब हम इस शरीर,धर्म ,जाति ,रंग-भेद को भूल जाते हैं तब स्वयं व अन्य सभी को एक ज्योति बिंदु ( आत्मा ) के रूप में देख पाते हैं। तब हमें सभी एक समान व विशिष्ठ अनुभव होते हैं। एक आत्मा किसी अन्य आत्मा को बिना शरीर हानि नहीं पहुंचा सकती। स्वानुभूति द्वारा ही हम सभी अन्य जीवात्माओं से जुड़ सकते हैं और एक परिवार के रूप में अनुभव कर सकते हैं - यही प्रेम है।
4. सुख
सुख, प्राप्तियों व स्वतंत्रता का एक मिश्रित अनुभव है। सुख का आधार प्राप्तियां हैं ( जो हम अर्जित या प्राप्त करते हैं ) तो जरा सोचिये - क्या आप सदा सुखी हैं ? जब किसी के जीवन में शांति व प्रेम की प्राप्ति होती है तो उसे सुखी कहा जाता है। वास्तव में सुख और कुछ नहीं बल्कि जीवन में शांति व प्रेमपूर्ण संबंधों की उपस्थिति है। सुख वास्तव में स्वयं की इस संसार में उपस्थिति का एक गहरा अनुभव है जरा सोचिये यह अनुभव तभी हो सकता है जब आप इस संसार में उपस्थित हों।

5. आनंद
आनंद , सुख की सर्वोच्च अवस्था है। यह सुख - दुःख से परे अवस्था का अनुभव है और यही आत्मा की सतयुगी अवस्था है। सत्य अर्थ में आत्मा ,परमात्मा के संग में आनंद का अनुभव करती है और यही राजयोग है। आनंद की झलक पाने के लिए मन - बुद्धि परमात्मा को समर्पित कर एक परमात्मा से ही सर्व संबंधों का अनुभव करना होगा।
6. शक्ति
यह आत्मिक शक्ति से सम्बंधित है न कि शारीरिक शक्ति से। अष्ट शक्तियां आत्मा का गुण है। कभी सुप्त, कभी जाग्रत अवस्था में। जब इन शक्तियों का दैनिक जीवन में उपयोग किया जाता है तो यह जाग्रत एवं जब उपयोग नहीं किया जाता तब यह सुप्त अवस्था में होती हैं।राजयोग के अभ्यास द्वारा इन शक्तियों को जाग्रत किया जा सकता है। इन्हें जानने के लिए देखे पृष्ठ - आत्मा की ८ शक्तिया

7. ज्ञान

आत्मिक अर्थात रूहानी ज्ञान सभी गुणों का स्त्रोत है। सत्य ज्ञान का अर्थ है आत्मा, परमात्मा और प्रकृति (रचना) का यथार्थ ज्ञान जिससे आत्मा में रोशनी आ जाती है। इस ज्ञान के केवल एक ही स्त्रोत है - स्वयं परमपिता परमात्मा वह स्वयं आकर रचना, रचयिता और सृष्टि चक्र का ज्ञान देते हैं। परमात्मा ही इस पूरी कहानी को जानता है एवं इसका गुह्य राज बता सकता है।
अब हम ज्ञान मुरली के द्वारा यह जानते हैं कि जैसे जैसे आत्मा ज्ञान से परिपूर्ण होती जाती है वैसे ही वह अधिक निर्विकारी (पवित्र) व शक्तिशाली होती जाती है। तो आईये अपने नेत्रों से अज्ञानता के परदे को हटा इस सत्य ज्ञान प्रकाश को आने दें।
*Useful Links*