संसार इनको अनेकों शास्त्रों के अनुसार आदि देव या आदम के नाम से याद करता है। वेदानुसार ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता व विष्णु, पालनहार हैं अतः हम यह समझ सकते हैं कि निराकार परमात्मा ( शिव ) ,ब्रह्मा के द्वारा नई दुनिया की रचना करते हैं। ब्रह्मा बाबा का जीवन कितना साधारण व सेवार्थ था,जैसा कि बड़ी दादियों, मुरली व बाबा के पत्रों द्वारा बताया गया है,आइये जानते हैं -
ब्रह्मा बाबा का लौकिक नाम लेखराज कृपलानी था एवं उनका जन्म 15 दिसंबर 1876 को सिन्ध, हैदराबाद (वर्तमान समय पाकिस्तान में ) खूबचंद कृपलानी के घर में हुआ था, जो की एक ग्रामीण पाठशाला के हेडमास्टर थे। माँ का देहान्त, उनकी अल्पायु में ही हो गया था। बड़े होकर उन्होंने हीरे परखने की, जवेरी की कला सीखी, और समय के साथ कलकत्ता के नामचीन हीरे के व्यापारी बन गए। जब उनकी आयु ६० साल के करीब रही होंगी, तो परमात्मा (शिव बाबा) में उन्हें कुछ साक्षातकार करवाए, जिसके बाद यह कहानी शरू होती है (विस्तार में जानने लिए हमारे हिस्ट्री पेज पर जाये)

जैसा कि 'इतिहास' पृष्ठ पर लिखित है कि 1935 -36 से ही दादा लेखराज,एक हीरों के व्यापारी, को परमात्मा द्वारा साक्षात्कार होने लगे थे। उस समय बाबा को यह निश्चय नहीं था कि यह सब कौन कर रहा है। दैवीय प्रेरणानुसार दादा लेखराज एक पाठशाला का आरम्भ कर ,आने वाले बच्चों को गीता का पाठ व आध्यात्मिक संस्करण सुनाने लगे थे। इस पाठ का आरम्भ ही गीता के रचयिता श्री कृष्ण नहीं बल्कि निराकार परमात्मा शिव बाबा हैं ,की व्याख्या से हुआ था। अब तक बाबा को 'ब्रह्मा ' नाम नहीं दिया गया था ,न ही परमात्मा का नाम 'शिव' है,यह यज्ञ में किसी को यथार्थ रूप से ज्ञात था। दादा लेखराज ने कुछ समर्पित माताओं व कुमारियों की एक ट्रस्ट की रचना की एवं अपनी समस्त पूंजी उसी यज्ञ में दे दी। यह यज्ञ माताओं द्वारा संभाला जाने लगा और एक रूहानी यात्रा का आरम्भ हुआ। जो समर्पित थे ,वे आकर कराची में बस गये और 14 वर्ष स्वपरिवर्तन हेतु तपस्या में बिताये। ब्रह्मा बाबा के बचपन से 1936 की कहानी, फिर साक्षातकार और ओम मंडली किस प्रकार निर्मित हुई, इससे सम्बंधित विडिओ निचे दिया है।
बच्चो के ब्रह्मा बाबा ➞

1952 से सेवा में वृद्धि हुई एवं सम्पूर्ण भारत से जिज्ञासु सेवाकेन्द्रों में आने लगे। बापदादा द्वारा लिखित पत्र भारत के सभी सेवाकेन्द्रों में रहने वाले फरिश्तों के मार्गदर्शक बने।
व्यक्तित्व व गुण ( ब्रह्मा बाबा के सन्दर्भ में )
ब्रह्मा बाबा ,जिनको 1949 में यह नाम दिया गया। वह एक विशेष आत्मा थे जिन्होंने एक बहुत ही मुख्य मानव पार्ट निभाया। वह मुरली सुनाने के द्वारा एक नई दुनिया की स्थापना हेतु परमात्मा के माध्यम बने। यह विशेष आत्मा असाधारण त्यागी गुण से भरपूर थी। चाहे लौकिक सम्पन्नता हो,चाहे प्रसिद्धता हो या शारीरिक विश्राम हो,सभी का त्याग कर दिया। कई वरिष्ठ दादियां ,जो यज्ञ में बाबा के साथ थीं ,आज तक उनके असाधारण ,प्रतापी,राजसी व्यक्तित्व को याद करती हैं। बाबा से जब भी कोई मिलता तो बाबा उसकी पसंद-नापसंद पूछ अवश्य ही कुछ सौगात देते थे। संक्षेप में बाबा हर एक से मीठे वचन व श्रेष्ठ कर्मों द्वारा बहुत ही समीप का सम्बन्ध बना लेते थे। बाबा के राजसी व्यक्तित्व का तेज उनके चेहरे से झलकता था। उन्हें हर समय नई दुनिया में कृष्ण के रूप में जन्म लेने का नशा रहता था। यह नशा गुप्त था इसलिए बाबा सदैव अहंकार मुक्त रहते थे। सरल व साधारण जीवन शैली द्वारा बाबा ने सदैव सबको परमात्मा का मार्ग दिखाया। जो भी बाबा से मिलता,उनके गुणों को अपने ह्रदय में बसा लेता था।
विश्व पिता होने के नाते बाबा करुणा व दया भाव से भरपूर थे। बाबा को जब भी किसी बच्चे के दुखी होने का समाचार पत्र द्वारा मिलता ,बाबा रात में सो नहीं पाते थे। बाबा उस बच्चे को शक्तिशाली बनाने के लिए सकाश देते थे। बाबा को यज्ञ में अनेकों विघ्न आये, जिनका सामना उन्होंने परमात्मा ( शिव बाबा ) एवं उनकी श्रीमत पर अपने अटल-अडिग विश्वास से किया और सफलतापूर्वक पार भी किया।
जब मम्मा 1965 में अव्यक्त हुईं तो बाबा पर यज्ञ की जिम्मेदारियां बढ़ गयीं दूसरी तरफ नये - नये सेवाकेंद्र भी खुलने लगे। अनेक बच्चों के पत्र बाबा के पास आते ,जिनका उत्तर बाबा, स्वयं समय मिलने पर देते। उनका एक भी पल व्यर्थ नहीं जाता था।
अंतिम दिनों में बाबा जिम्मेदारियों से भी न्यारे होने लगे। दादियों में सभी जिम्मेदारियां बाँट कर बाबा ने अंतिम वर्ष मधुबन मे तपस्या में बिताया। जनवरी 1969 में बाबा ने अपनी अंतिम कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कर इस साकारी दुनिया को त्याग दिया। बच्चे अब यह समझते हैं कि यह कार्य शिव बाबा ने ही ब्रह्मा बाबा द्वारा कार्यान्वित किया जिससे सेवायें बेहद में बढ़ें। बापदादा ने सूक्षम वतन से अपने बच्चों को समर्थ व सशक्त बनाने हेतु मुरली सुनाना जारी रखा ( अपने रथ दादी गुलज़ार द्वारा ) भारत के बाहर भी अब सेवाकेन्द्रों की स्थापना होने लगी। बापदादा का यह गुप्त पार्ट 1969 से चला परन्तु 2016 में समाप्त हो गया। अब परीक्षा का समय है। अब तक हर पाठ पढ़ा दिया गया है ,यह वह समय है जब शिक्षक मौन हो गया है। अब बारी हम बच्चों की है कि हर परीक्षा को ,पढ़ाये गए पाठ द्वारा अच्छी रीति उत्तीर्ण कर दिखाएँ।
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